Wednesday, January 13, 2021

साहस, विश्वास, समता, तत्त्व-बोध

सारिका को सबसे पहले 16 दिसम्बर 2020 को ब्रैस्ट कैंसर डिटेक्ट हुआ था । ब्रैस्ट में गठान थी जो काफी बढ़ गयी थी । करीब एक महीने पहले से गठान लग रही थी परन्तु उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया । जैसे ही पता चला, तो डॉ. दिलीप पंचोली सर ने तत्काल इसे गंभीरता से लेने और इलाज कराने के लिए कहा । उन्होंने ही सारे विकल्प बताये कि किन डॉक्टर्स के पास दिखाया जा सकता है ।

सबसे पहले हमने कैंसर के विशेषज्ञ डॉ. सुखविंदर सिंह नय्यर सर को कंसल्ट किया । उनके अनुसार गठान बहुत बढ़ गयी थी । या तो हम पहले ऑपरेशन करके ब्रैस्ट निकाल लें या पहले कीमोथेरेपी देकर गठान को छोटा करें – ऐसे दो विकल्प सामने थे । हमने एक और डॉ. – डॉ. अश्विन रंगोले सर को कंसल्ट किया जो स्वयं Oncho सर्जन हैं । इन्होने भी इसी प्रकार दोनों विकल्प कहे परन्तु पहले कीमोथेरेपी देना चाहिए, फिर गठान के छोटे होने पर सर्जरी करना चाहिए । इससे हम इस निर्णय पर पहुंचे कि प्रथम कीमोथेरेपी देना ही ठीक है ।

और फिर 18 दिसम्बर को पहला कीमो सारिका को दिया गया । यह बहुत जल्दी में लिया गया निर्णय था । क्योंकि हमें अभी बहुत कुछ पता नहीं था तथापि चूँकि बीमारी के पता होने में हम पहले ही देर कर चुके थे इसलिए अधिक देर करने का कोई विकल्प नहीं था ।

एक कीमो देने के बाद अगला कीमो लगभग 21 दिन बाद दिया जाता है । अतः इस बीच हमें समय मिला कि अगल कदम क्या होगा । वीरेन्द्र भैया (सारिका के भाई) ने काफी खोजबीन करके बताया कि अहमदाबाद में कई कैंसर के ही अस्पताल हैं जहाँ से हमें इलाज कराना चाहिए; इलाज नहीं तो कम-से-कम जो इस फील्ड के अत्यंत अनुभवी डॉक्टर्स हैं उनकी सलाह लेनी चाहिए । यह सलाह उपयोगी थी अतः वीरेन्द्र भैया-भाभी के साथ हम लोग 22 दिसम्बर को अहमदाबाद के लिए निकल गए ।

23 दिसम्बर को वहां Zydus हॉस्पिटल के माध्यम से PET-CT कराया । यह एक प्रकार का स्कैन होता है जिससे मालूम होता है कि कैंसर शरीर के किन-किन हिस्सों में फ़ैल चुका है । दोपहर तक इसके रिजल्ट्स आ गए । रिपोर्ट से पता लगा कि अभी कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों में फैला नहीं है, मात्र ब्रैस्ट और उससे लगे लिम्फनोड तक बढ़ा है । यह एक अच्छी बात थी । Zydus के डॉ. श्रीनिवासन और डॉ. प्रियंका ने पहले सर्जरी करके फिर कीमो कराने की सलाह दी । चूँकि कीमो को हुए अभी बहुत दिन नहीं हुए थे इसलिए तत्काल सर्जरी तो संभव ही नहीं थी । तो हम लोग वापिस इंदौर लौट आये ।

हम लोगों ने सर्जरी और कीमो के सम्बन्ध में और भी विचार लिए । डॉ. नय्यर से भी चर्चा की तो उन्होंने कहा अब एक कीमो की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है तो उसे ही अभी कंटिन्यू करना है । टाटा मेमोरियल के डॉक्टर्स से भी सलाह ली तो उन्होंने ने भी कहा प्रथमतः कीमो यदि प्रारंभ किये हैं तो 3-4 साइकिल कीमो के देकर सर्जरी करना चाहिए । कुछ कारण से इंदौर के डॉक्टर बदलने पड़े तो हमने डॉ. राकेश तरण से सलाह ली । एक biopsy टेस्ट करना अभी शेष था । उन्होंने कहा पहले biopsy टेस्ट होने के पश्चात् ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है । 31 दिसम्बर को यह biopsy टेस्ट कराया । इसके रिजल्ट्स 7 जनवरी की रात्रि को प्राप्त हुए । biopsy में TNBC कैंसर का टाइप पता चला । 8 जनवरी को पुनः डॉ. तरण से सलाह ली । उन्होंने कीमो को ही कंटिन्यू करने को कहा । हमने भी ऑनलाइन जानकारी खोज कर यह समझ लिया था कि इस प्रकार के कैंसर में प्रारंभ में कीमो दिया जाता है उसके पश्चात सर्जरी की जाती है । चूँकि 8 जनवरी को प्रथम कीमो के 21 दिन हो भी गए थे तो 9 जनवरी को अगला कीमो दिया गया । इसके पश्चात् अगला कीमो 30 जनवरी को निर्धारित है । इसके बाद 4th कीमो देकर संभवतः सर्जरी की जाएगी ।

पूरी प्रक्रिया के दौरान सारिका ने गजब का साहस, धैर्य और निश्चिन्तता दिखाई । कैंसर के रोगी रोग का पता लगते ही हिम्मत हार जाते हैं । लेकिन सारिका ने ना हिम्मत हारी, ना अवसाद में गयी, ना अपने दैनिक कार्य छोड़े । जब यह सब पता चल रहा था तो उस दौरान हमारा गोम्मटसार का शिविर प्रारंभ हो रहा था । 18 दिसम्बर को सारिका अस्पताल में थी और 19 को शिविर का उद्घाटन था । मैं 18 को दिन और रात्रि में अस्पताल में रुका था । 19 को सुबह 6 बजे अस्पताल से मैं चला गया और घर के अन्य सदस्य अस्पताल में रुके रहे । सारिका की अस्पताल से छुट्टी लगभग 11 बजे होनी थी । लेकिन शिविर के लिए प्रोत्साहन करते हुए सारिका ने बड़ी ख़ुशी के साथ कहा कि "आप जाइये; शिविर संभालिये । जिनवाणी सुनने के लिए साधर्मीजन काफी दिनों से इन्तजार कर रहे हैं । पुनः जिनधर्म की प्रभावना बढ़े यह बहुत प्रसन्नता का विषय है । मैं स्वयं भी बेहतर होने पर कक्षा लेने के लिए तैयार हूँ । मेरी चिंता नहीं करें । मैं ठीक ही हो रही हूँ ।"

यह बहुत महत्त्वपूर्ण अंतःस्थिति का परिचय देता है । जिसके मन में धर्म, जिनवाणी के प्रति बहुमान हो वही व्यक्ति वास्तव में ऐसी परिस्थिति में धर्म का अनुमोदन कर सकता है ।

कीमो लगने पर शक्ति क्षीण हो जाती है, आराम की भी आवश्यकता होती है; तथापि सारिका ने कीमो के 2 दिन बाद ही 20 दिसम्बर से शिविर की दिन की कक्षा लेना प्रारंभ कर दिया । मात्र जब हम शिविर के दौरान अहमदाबाद गए थे उन दिनों चूँकि हम सफ़र तथा अस्पताल में थे इसलिए वह 3 दिन की कक्षा नहीं ले पायी । आने के तुरंत बाद 25 से 29 तक लगातार दिन की 1.5 घंटे की गंभीर कक्षा बड़ी सहजता और एकाग्रता के साथ उन्होंने ली । यह अद्भुत था । इससे यह भी पता चलता है कि उन्होंने यह ग्रन्थ कितनी गहराई के साथ अध्ययन किया हुआ है । अन्यथा ऐसे जटिल विषय को ऐसी परिस्थिति में समझा पाना संभव नहीं है ।

कीमो देने के बाद पूर्ण आराम की आवश्यकता होती है परन्तु जब अहमदाबाद जाने की जरुरत पड़ी तो उसमें भी सहजता के साथ स्वीकार कर लिए और लगभग 7 घंटे का सफ़र किया ।

शिविर पूर्ण होने के बाद जो उनकी दिन की नियमित गोम्मटसार की कक्षा लगती थी वह भी पूर्ववत् उन्होंने प्रारंभ कर ली । उसके लिए प्रतिदिन आवश्यक अध्ययन भी वह करती रही । प्रतिदिन देव-दर्शन, पूजन पूर्ववत् बने रहे । जिस व्यक्ति को सारिका की बिमारी का पता नहीं था, वह उनसे मिलकर यह समझ भी नहीं पा रहा था कि उन्हें कोई गंभीर बीमारी हुई है ।

जिसे पता चलता था कि सारिका को कैंसर है और वह बात करता था; तो बात करने वाला लगभग हर व्यक्ति रोने लगता था, परन्तु सारिका नहीं रोई । वरन वह उन लोगों को शांत ही कराती थी । वह कहती है कि "सब ठीक हो जाएगा; अभी तो अपन जीवित ही हैं । इलाज भी कर ही रहे हैं । अपनी जो सामर्थ्य है उसके अनुसार कार्य कर रहे हैं । आप लोग नहीं घबराओ ।" वाह, जिन्हें कहना चाहिए था ‘मत घबराओ, ठीक हो जाएगा वे स्वयं ही घबरा रहे थे और जिसे रोना चाहिए था, वह चुप करा रहा था ।  

यह सब कुछ वास्तव में उनके दृढ़ आत्म-विश्वास, जिन धर्म की भक्ति, अंतरंग में जिनदेव, वस्तु-स्वरूप के भरोसे का परिचायक है । जिसने धर्म को धारण किया है, वही इतनी समता रख सकता है ।

पूरे परिवार ने भी काफी शान्ति रखी और सभी की पूर्ण अनुकूलता बनी हुई है । आया हुआ रोग तो समय पाकर जाएगा । परन्तु आया है तो जो संभव प्रतिकार है, वह सब हम करने को तैयार हैं और कर रहे हैं । सारे साधर्मियों का साथ, संबोधन, धैर्य और सहयोग प्राप्त हो रहा है । आप सभी के वात्सल्य का बहुत आभार । 

ऐसी विकट परिस्थिति में धर्म ही है जो समता प्राप्त कराता है, आकुलित नहीं होने देता, आर्त-ध्यान से बचाता है । क्यों धर्म के संस्कार बचपन से ही गहरे डालने चाहिए यह बहुत नजदीकता से अनुभव हुआ । किसको कब आत्म-तत्त्व, कर्म-सिद्धांत, जिन-भक्ति की आवश्यकता पड़ जाए यह नहीं कहा जा सकता । लोग सोचते रहते हैं कि कुछ उमर बीत जाए फिर भगवान की भक्ति किया करेंगे परन्तु जब भक्ति की आवश्यकता होगी, दृढ़ता चाहिए होगी तब अचानक कैसे भक्ति कर लेंगे? क्या ‘आग लगे तभी कुआँ खोदेंगे’ ? आज जो सारिका के मुख पर मुस्कान है, वह धर्म की है । यह धर्म की जय भी है कि देखो, प्रतिकूलता में भी धर्मी जीव आकुलित होकर संतप्त नहीं होते बल्कि उनका सामना धैर्य के साथ करते हैं ।

यह सब इसलिए लिखा है जो आप हम सभी से स्नेह रखते हैं, उन्हें क्या हुआ, क्या चल रहा है यह बताया जा सके जिससे आपको सारिका को देखने पर व्यर्थ में चिंता न बढ़े । जिन्हें पहले से पता होने पर जो चिंता हुई है, वह सब यह पूरी प्रक्रिया जानकर शांत हो जाए ।

विपरीत समय में कैसे धैर्य रखा जा सकता है, इसके उदाहरण हमारे आपके पास रहें जिससे हम-आपको ऐसी परिस्थितियों में संबल मिले ।

आप जब स्वयं कभी सारिका से बात करें, तो बीमारी की बातें करने के बजाए सामान्य ही रहें, सकारात्मक बातें या तत्त्व-चर्चा आदि करें तो वह भी प्रसन्न रहेगी । ना स्वयं परेशान हों, ना विपरीत सोचकर/बोलकर अन्य को करें । 

आपको कुछ बीमारी सम्बंधित सुझाव देने हों, तो कृपया सारिका को ना देकर मुझे ईमेल अथवा SMS कर दें । मेरा ईमेल है vikasnd@gmail.com और SMS हेतु नंबर है - 94066-82889 

 

- विकास जैन, इंदौर