Case 1: एक व्यक्ति ने दूसरे को थप्पड़ मारा, तो दूसरे
ने भी उसे थप्पड़ मार दिया।
Case 2: एक व्यक्ति ने एक को दो थप्पड़ लगाये, तो दूसरे
ने उसका हाथ तोड़ दिया।
Case 3: एक अन्य व्यक्ति ने दूसरे को दो थप्पड़ लगाये,
तो दूसरे ने उसकी ह्त्या कर दी।
अब यदि इन तीनों स्थितियों का आकलन आप करें, तो आपको कौन सी
स्थिति अन्यायपूर्ण लगेगी?
पहली स्थिति ठीक लग रही है क्योंकि प्रत्युत्तर देना आवश्यक
हो जाता है | 2nd स्थिति ठीक नहीं लग रही। क्यों? क्योंकि प्रत्युत्तर कुछ अधिक दे दिया गया है। और 3rd case तो बिलकुल ही सिर से परे
है | 1 थप्पड़ के लिए कोई किसी की हत्या कैसे कर सकता है? ऐसा ही आपका विश्लेषण है
या कुछ और?
अब लौकिक न्याय की व्यवस्था की तरफ से इन तीनों का विचार
करते हैं|
पहली अवस्था यदि न्यायालय में चली गई तो हास्यास्पद होगा |
शायद case ही दायर ही ना हो| दूसरी स्थिति में हाथ तोड़ने वाले को सजा मिलेगी,
शायद ६ माह या अधिक | तीसरी स्थिति में हत्यारे को कठोर दंड मिलेगा| ऐसा
न्याय देने का कारण भी है – इस व्यक्ति ने अपना आपा (balance) खोकर अन्य को उतनी
हानि पहुंचाई, जितनी कि उसे हानि नहीं हुई थी। उसे मात्र २ थप्पड़ का दर्द था, लेकिन उसने उसके बदले में अन्य का जीवन ही
समाप्त कर दिया।
सभी को यह न्याय ठीक लग रहा है, Right?
अब थोड़ा और विचार करते हैं।
Case 1: एक व्यक्ति को एक मच्छर ने काटा, उस व्यक्ति ने
फूंक मार कर उसे उड़ा दिया।
Case 2: एक अन्य व्यक्ति को मच्छर ने काटा, उस व्यक्ति
ने उसे अपंग कर दिया।
Case 3: एक अन्य व्यक्ति को मच्छर ने काटा, उस व्यक्ति
ने उसे दबाकर मार ही दिया।
अब
इसका आकलन आप करें। क्या 2nd और 3rd व्यक्ति का व्यवहार
आपको उचित लग रहा है? क्या एक जीव का सामान्य अपराध उसे अपंग कर देने या उसका जीवन
लेने जैसा अपराध है?
आप कह
सकते हैं कि उसने हमें पीड़ा दी है अतः हम उसकी जान ले सकते हैं। तो पूर्वोक्त
उदाहरण में 3rd case में
हत्यारा व्यक्ति भी यही कह सकता है कि ‘दूसरे व्यक्ति ने उसे पीड़ा पहुचाई थी, इसलिए
उसने उसे मार दिया।‘ लेकिन उस समय आपका उत्तर था कि इतनी छोटी पीड़ा के लिए दूसरे
का जीवन नहीं लिया जा सकता। ठीक इसी तरह एक centi-meter से
भी कम जगह में पीड़ा पहुचाने वाले किसी प्राणी का जीवन लेना उचित कैसे हो सकता है?
आप यह भी
कह सकते हैं कि ‘इसका कोई आपराधिक case नहीं बनता, ना ही कोई दंड मिलता है।‘ ठीक है, लौकिक न्यायालय में किसी
हद तक इसका कुछ दंड नहीं, पर क्या जगत के न्याय से भी आप बच सकते हैं? ध्यान
रखिये — यदि अपराध है, तो दंड भी अवश्य है। आप स्वयं विचारें कि क्या
आपको इस जीवन में अभी तक कोई दंड नहीं मिला? और जो दंड मिले हैं, वे क्या आपके
द्वारा ज्ञात अपराध करने पर ही मिले हैं? तो आप पायेंगे कि आप स्वयं कई बार कहते
हैं कि ‘मैंने तो कोई गलती की ही नहीं, मेरा क्या अपराध है? इत्यादि’। याने आपको
दंड मिल रहे हैं और आपको अपना अपराध पता भी नहीं है। यही जगत का अदृश्य और
विश्वासपूर्ण न्याय-विधान है। अतः आप यह नहीं कह पाएंगे कि ‘इस प्राणी का जीवन लेने
पर मुझे कुछ फल नहीं मिलेगा! कोई case नहीं लगेगा।‘ बिलकुल
लग रहा है, और actually case दायर भी हो चुका है।
लेकिन
कौन decide करेगा कि क्या फल है इस 2nd/3rd
case का? तो आप स्वयं सोच सकते हैं किस प्रकार का दंड मिलना चाहिए। प्रथम
परिस्थिति एक सामान्य परिस्थिति है, उसका विशेष दंड नहीं है। 2nd और 3rd असामान्य परिस्थिति
है। इसमें व्यक्ति ने अपना आपा खोकर अन्य का सर्वस्व छीन लिया। जितना बड़ा अपराध
अन्य ने किया नहीं, उससे अधिक दंड उस व्यक्ति ने दे दिया। अतः अब इसके साथ भी इस
तरह का व्यवहार किया जाए, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है, बल्कि न्याय है, Right?
एक अंतिम स्थिति का और विचार करते हैं। एक व्यक्ति ने अन्य
को थप्पड़ मारा, लेकिन दूसरे ने कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं की, ना ही मन में रोष लाया, बल्कि शांत भाव से सहन कर लिया। इसे आप क्या कहेंगे? आप
कहेंगे कि यह संभव नहीं और उचित भी नहीं। लेकिन ऐसा कहने के पहले थोडा विचार
कीजिये। शायद एक महात्मा की याद आपको आए! जिन्हें हम महात्मा गांधी कहा करते हैं।
हम यह कह सकते हैं कि हर व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है,
ऐसा शांत परिणाम हर कोई नहीं रख सकता है। सत्य बात है, तभी तो हर
व्यक्ति महात्मा गांधी नहीं हुआ करता है J।
ऐसे ही किसी व्यक्ति को मच्छर ने काटा, तो उस व्यक्ति ने
उसका प्रतिकार नहीं किया, ना ही मन में दुखी हुआ, बल्कि शांत भाव से सहन कर लिया।
इसे आप क्या कहेंगे? क्या ऐसा संभव है? हाँ, हर व्यक्ति के
लिए संभव ना हो, परन्तु संभव है। और ऐसे अभ्यासी जीव भी इसी
धरा पर मौजूद हैं। वे हैं हमारे महात्मा, साधु, संत, विरक्त ज्ञानी
जीव, जो ऐसी परिस्थिति में भी अन्य प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचाते।
हम जब तक इस आदर्श अवस्था तक नहीं पहुँच पाते, तब तक case 2 और 3 जैसा हमारा व्यवहार तो ना
हो। इतना कर्तव्य भाव तो स्वयं में उत्पन्न होना चाहिए अन्यथा
गंभीर दंड प्राप्त करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
नोट: मच्छर का तो एक उदाहरण मात्र है। ऐसे ही अन्य जीवों
पर भी समझ लेना चाहिए। ऐसे ही फटाखे फोड़ कर जीव हिंसा करें, तब तो वह
स्थिति बन जायेगी कि दूसरे ने हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ा फिर भी उसकी जान लेने के
लिए हम तैयार हैं। यह कितना भयावह है!! आप स्वयं इसका फल सोचें।
विकास जैन, इंदौर