Thursday, February 4, 2010
विदाई की बेला
अमेरिका से भारत वापिस जाने में जो उत्साह है, मुझे आशा है कि मृत्यु के पूर्व भी ऐसा ही उत्साह और ऐसी ही उमंग हो.
अभी जो आने वाला अगला पड़ाव है, उसके प्रति अत्यंत हर्ष है | यह कदम कुछ अद्भुत, अलग और विकास की ओर मालूम होता है. बस, ऐसा ही मृत्यु के पूर्व आगे के पड़ाव के लिए हर्ष हो. आगे आने वाले भव में कुछ अद्भुत, विशेष और विकास दिखता हो.
जैसे अमेरिका रहना एक साधन था, जिससे धर्मसाधना उत्तम हो. वैसे ही यह जीवन एक साधन मात्र हो, जिससे निज की प्राप्ति हो.
जैसे अमेरिका में रहते हुये ही साधना प्रारंभ की है और ऐसा विश्वास है कि उसकी पूर्णता भारत में होगी. वैसे ही इस ही जीवन में निजात्मा की प्राप्ति की शुरुवात हो और पूर्णता यथायोग्य हो.
जैसे मैं वापिस जाने के लक्ष्य के प्रति पहले दिन से ही कटिबद्ध था. वैसे इस जीवन में रहते हुये निज-प्राप्ति के लिए ही दृढ़ रहू.
जैसे वापिस जाने के पूर्व यहाँ रहकर कुछ अर्थ-व्यवस्था की है, जो अगले पड़ाव में किंचित काम आएगी. वैसे मृत्यु से पूर्व next गंतव्य के लिए इस भव में कुछ धन (आत्म-दर्शन / सम्यग्ज्ञान) ईकट्ठा कर लिया हो, जो अगले पड़ाव में पूर्ण रूप से काम आएगा.
जैसे भारत जाकर क्या काम (job) करेंगे, इसका कोई विकल्प नहीं है या यह निर्णय है कि कुछ काम ही ना करेंगे, लौकिक कार्य से निवृत्त हो जायेंगे. वैसे ही अगले भव में क्या काम करेंगे, इसका विकल्प ना हो या यह निर्णय पूर्ण हो कि कुछ कार्य ही नहीं करना है, भवों से निवृत्त होना है, कृत्कृत्य रहना है.
जैसे मुझे अमेरिका छोड़ते समय जरा भी रंज नहीं है क्योंकि प्राप्त होने वाली वस्तु महत्त्वपूर्ण, निश्चित और स्पष्ट है. वैसे ही देह छोड़ते समय रंच मात्र भी दुख ना हो क्योंकि प्राप्य की प्राप्ति हुई हो अथवा प्राप्य ही प्राप्त होने वाला हो, यह स्पष्ट हो.
जैसे अभी अन्य किसी बात का दुख नहीं, मात्र धर्म-प्रेमी बंधुओ के वियोग का विकल्प है. वैसे ही मृत्यु के समय अन्य कोई आर्त्तध्यान ना हो. अगर हो भी, तो मात्र देव-शास्त्र-गुरु के लघु-वियोग संबंधी ही हो.
जैसे इस ही क्षण उनके (साधर्मियों) वियोग का विकल्प, मिलने वाले धार्मिक जनों के विचार से नष्ट हो जाता है. वैसे ही यह वियोग-विचार निज आत्म-दर्शन से तथा भविष्य में प्राप्य अर्हंत देव के विचार से नष्ट हो.
यद्यपि हमारा वियोग अन्य जनों को व्यथित करता है, तथापि हमारी सद्परिणति का विचार करके किसी व्यक्ति की आंखो में दुख के अश्रु नहीं है. वैसे ही मृत्यु के पूर्व आस-पास के लोगों को हमारे सद-भविष्य के विचार से अश्रुपात ना हो.
जैसे अपना visa का समय पुरा होने से पूर्व ही यहाँ से जाना निश्चित किया है / जा रहे है, अन्तिम समय तक का wait नहीं कर रहे कि visa extend हो जाये, या जैसे अधिक रुकने का प्रयास ही नहीं किया. वैसे ही मृत्यु आने के पहले ही हम शरीर छोड़ दे, last moment तक wait नहीं करे कि किसी प्रकार तो आयु extend हो जाये या कोई तो किसी विधि से बचा ले / रोक ले.
जैसे इस देश में permanent रुकने संबंधी प्रपंच कभी किया नहीं, वैसा भाव ही पैदा नहीं हुआ. वैसे ही इस पर्याय में permanent रहने का कभी विकल्प ना हो.
जैसे जाने के बहुत पूर्व ही सभी को इस प्रकार से सूचित करके मानसिक रूप से तैयार कर दिया था ताकि अंत समय पर अकस्मात का विचार ना हो. वैसे ही मृत्यु के बहुत समय पूर्व ही हम और अन्य पूर्ण रूप से तैयार हो, ताकि मृत्यु अकस्मात ना मालूम हो.
जैसे जाने से पूर्व ही अपना वैभव (ग्रंथादि) और कर्त्तव्य (job / class) सुविचारित रीति से नियोजित कर दिये है, वैसे ही मृत्यु के पूर्व भव संबंधी सारे वैभव और कार्य सुनियोजित हो जाये.
जैसे अभी जाने से पहले जिन सांसारिक लोगों से कुछ मेल-मिलाप था, उनसे अल्प तथा औपचारिक बात हुई तथा साधर्मी भाई-बहनो से अधिक और विशेष चर्चा हुई. उसी प्रकार मृत्यु के पूर्व सांसारिक जनो से अल्प वार्ता से ही काम चल जाये तथा साधर्मियों से ही अधिक संसर्ग हो.
जैसे अभी यह विचार है कि यहाँ के साधर्मी जन इंदौर आदि में पुनः मिलेंगे. वैसे ही मृत्यु के पूर्व यह जानना हो कि सभी साधर्मी जीव एक साथ सिद्ध अवस्था में प्राप्त होंगे.
जैसे यहाँ से जाने के कुछ समय पूर्व ही अपना निवास छोड़ कर अन्य जगह (कुणाल के घर) अस्थायी निवास कर लिया है. वैसे ही मृत्यु के पूर्व घर परित्याग कर तीर्थ या मंदिर आदि में संल्लेखना हो.
जैसे यहाँ से जाने के पूर्व तक job पर जाना तो हुआ, परंतु वह बस नाममात्र था, औपचारिक था. वैसे ही मृत्यु के पूर्व कदाचित कषायादिक हो, तो वे नाममात्र ही हो, सार्थक ना हो.
जैसे जाने के दिन के अन्तिम समय तक स्वाध्याय / पूजन / class आदि होते रहे है. वैसे ही मृत्यु के आने के पूर्व समय तक देव-शास्त्र-गुरु व निजातम का अध्ययन होता रहे.
जैसे यह श्रद्धान अभी ही चल रहा है कि क्षेत्रांतर देहांतर नहीं है. वैसे ही यह श्रद्धान निरंतर चलता रहे कि देहांतर निज-स्वरूपांतर नहीं है.
जैसे भारत जाने पर मेरा नाश नहीं हो रहा, वैसे ही मृत्यु होने पर भी मेरा नाश नहीं होता.
जैसे मेरा बाह्य वैभव मेरे साथ ही है, भले ही अमेरिका रहो या भारत रहो या अन्य जगह रहो. वैसे ही मेरा स्वरूप, मेरा निज वैभव मेरे साथ ही है, भले ही मनुष्य रहु या देव रहु या कोई अन्य रहु.
जैसे यहाँ से जाते समय यह तीव्र भरोसा / विश्वास है कि जो मैं भारत पहुचुंगा, वह मैं ही हु, कोई अन्य नहीं. वैसे ही मृत्यु के समय भी यह श्रद्धान निजात्म संबंधी हो कि मैं यही चैतन्य स्वरूप हू जो अन्य स्थान गमन कर रहा हू, कोई अन्य नहीं, अन्य नहीं, अन्य नहीं!!
Wednesday, February 3, 2010
I am 27 and retiring!
From: Vikas Jain (WLC)
Sent: Wednesday, February 03, 2010 12:35 PM
To: Windows Live Web Communications (FTE)
Subject: I am 27 and retiring!
Hello Team,
Some of you know already this is my last Friday at Microsoft and in USA. I'm moving back to India this Saturday.
Before leaving, I wanted to take a moment to thank you for your help, support, feedback, and suggestions for last 3 years in WC team. I have learned a lot from each of you in one way or other. I am grateful to Microsoft and United States for giving me opportunity for studies and such wonderful professional experience.
During this time if there's anything on my part that caused inconvenience to you (many things!!), I ask for you generous forgiveness. If there's any feedback / suggestion you want to give me to improve myself, I'll be glad to receive that. Sorry, you can't post it to http://performance/ any more :-). But good news - once I am gone, then you can blame all the stuff gone wrong due to me. I won't be there to hear that.
Once again thanks and wish you good luck to you all!
- Vikas
PS: There are some general questions people ask me, so I have compiled a short FAQ for you. Read along if you are interested.
FAQs:
What will I be doing once I go back?
I am going to spend most of the time with Jainism studies, understanding and implementing it in my life. If time allows and there are people, I'll be teaching the same. I'll also be giving some time for social service and local community improvements. (FYI - I have been teaching Jainism for last 4 years in Seattle and Bay area. There is a regular class at local Jain center. The classes were webcasted at http://www.ustream.tv/channel/jain-mmp-class.)
Someone asked me how much time I'll take to read/understand all books. I thought how much time I need and realized I can read all the books maybe in 5-7 years, but to really understand/implement a single book or even a single sentence it may take entire life time. So learning is not the end goal, it's starting point only.
Don't I like USA?
This is not about liking or disliking USA or India. It's more related to my goals which I can accomplish better in India than here. It's been exciting, challenging here, but the next steps that I want to take are different than what I have been doing here. Spirituality is my passion and want to spend time in exploring this now.
Why am I retiring and moving back?
I am not retiring for a relaxed comfortable life, or to roam around the world/places, or not to live materialistically. I am not expecting that I won't have any problems in India; nor am I hoping anyone is waiting for me there. I am not expecting that I won't have any external issues because I am into spirituality. Please remember those are phases of the life that would come anyway regardless of where I am. You need to learn how to be detached with such situations / things. I am learning that now and will continue learning and practicing it. That's why I am going back.
Do I have enough money?
One of my friends and some others asked me 'do I have enough money to go back and retire?' I asked him when we have enough money? I haven't seen any person here who has enough money though they have been working for years, days and nights; but still don't have enough money. They all want more. When does this end! I am not going back because I have enough money. If this is the reason for my returning back, I'll be in misery after very short time. Think what would happen when this money goes away. Can I make sure this money will always be with me? Can I make sure I will never make any mistake to lose this money? I don't think so; nor do I think anyone can assure that. So the answer is there is not enough money, but this is the end to my desire - तृष्णा. I am learning how to be content. That's the key to return, not money.
Where will I be in India?
I am not joining any missionary or church nor am I becoming any saint. I'll be in my hometown Indore. This would be my address for at least some time:
Vikas Jain
53 Malharganj Main Road
Indore, Madhya Pradesh. 452002
91-731-2410880